हर महीने जैसे ही सैलरी आती है, मन में एक अजीब सी खुशी और राहत मिलती है।

लगता है जैसे अब सब कुछ ठीक चलेगा और कोई परेशानी नहीं होगी। पर दो हफ्ते भी नहीं बीतते और बैंक अकाउंट फिर से खाली लगने लगता है।

EMI, किराया, खाने-पीने का खर्च, बाहर घूमना, online order पता ही नहीं चलता कि पैसा कहाँ गया।

अगर यह कहानी आपकी भी है, तो आप अकेले नहीं हैं। बहुत से लोग इसी परेशानी से गुज़रते हैं।

आइए, अब हम गहराई से जानते हैं कि सैलरी आखिर क्यों इतनी जल्दी खत्म हो जाती है और इस मुश्किल से कैसे बचा जाए।

यह सिर्फ पैसों को रोकने का नहीं, बल्कि उन्हें सही से मैनेज करने का एक तरीका है।

पैसे कहाँ जा रहे हैं, ये जानना सबसे ज़रूरी

सैलरी आती है और चली जाती है, क्योंकि हम इस बात से अनजान होते हैं कि हम कहाँ-कहाँ पैसा खर्च कर रहे हैं।

हम सोचते हैं कि ये तो छोटा सा खर्च है, लेकिन हर दिन थोड़ा-थोड़ा खर्च होता है कभी ₹20 की चाय, कभी ₹100 का snacks, कभी ₹300 का ऑनलाइन खाना या ₹199 का ऐप सब्सक्रिप्शन।

ये सब छोटे-छोटे खर्चे मिलकर महीने के अंत तक एक बहुत बड़ी रकम बन जाते हैं।

जब तक आप यह नहीं देखेंगे कि पैसा कहाँ जा रहा है, आप उसे रोक भी नहीं सकते।

यह बिल्कुल ऐसा है जैसे एक बाल्टी में छोटे-छोटे छेद हों और पानी धीरे-धीरे निकलता रहे। आपको पता भी नहीं चलेगा और बाल्टी खाली हो जाएगी।

इसलिए, सबसे पहला काम है इन छेदों को पहचानना।

खर्च लिखना शुरू करें

यह कोई मुश्किल काम नहीं है। बस अपने रोज़ के खर्चों को लिखना शुरू करें।

इसके लिए आप एक नोटबुक, एक्सेल शीट, या अपने मोबाइल में मौजूद किसी खर्च ट्रैकिंग ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं।

आज कितना खर्च किया और कहाँ किया बस यही रोज़ लिखें। चाहे वह चाय का ₹10 हो या पेट्रोल का ₹200, सब कुछ लिखें।

जब आप महीने के अंत में यह देखेंगे कि ₹5000 सिर्फ बाहर खाने पर खर्च हो गए, तो अगली बार ऑनलाइन ऑर्डर करने से पहले आप ज़रूर दो बार सोचेंगे।

यह एक छोटी सी आदत है जो आगे चलकर बहुत पैसा बचाती है। यह सिर्फ रिकॉर्ड रखना नहीं, बल्कि खुद को अपने खर्चों के बारे में जागरूक करना है।

ज़रूरत और शौक में फ़र्क

यह जानना बहुत ज़रूरी है कि कौन से खर्चे आपकी ज़रूरत हैं और कौन से सिर्फ आपकी इच्छा

घर का किराया, दूध, दवाइयाँ, स्कूल की फ़ीस—ये आपकी ज़रूरतें हैं जिन्हें टाला नहीं जा सकता।

वहीं, हर हफ्ते नए कपड़े खरीदना, ब्रांडेड जूते, या बार-बार ऑनलाइन खाना मंगवाना ये सिर्फ आपकी इच्छाएँ हैं।

शौक पूरे करना गलत नहीं है, लेकिन उनकी एक सीमा होनी चाहिए।

जब भी कोई चीज़ खरीदने का मन करे, खुद से एक सवाल पूछें: “क्या यह अभी खरीदना बहुत ज़रूरी है?” अगर जवाब “नहीं” है, तो उस खर्च को कुछ समय के लिए टाल दें।

आप देखेंगे कि कई चीजें जिन्हें आप खरीदना चाहते थे, कुछ दिनों बाद उनका मन ही नहीं करेगा।

ये भी पढ़ें: छोटी-छोटी बचत(saving) से बड़ा फंड कैसे बनाएं

सैलरी आते ही पहले बचत Or खर्च

यह एक बहुत ही असरदार तरीका है। ज़्यादातर लोग यह सोचते हैं कि पहले खर्च करेंगे और जो बचेगा उसे बचा लेंगे।

लेकिन सच यह है कि आखिर में कुछ बचता ही नहीं।

इसलिए, एक आसान नियम अपनाएँ सैलरी आते ही अपनी आय का 10-20% हिस्सा बचत के लिए तुरंत अलग रख दें

इस तरीके को “पहले खुद को भुगतान करें” (Pay Yourself First) भी कहते हैं।

मान लीजिए आपकी मासिक आय ₹25,000 है, तो कम से कम ₹2,500 बचत के लिए अलग निकाल दें।

आप इसे किसी दूसरे सेविंग अकाउंट में डाल सकते हैं या SIP (Systematic Investment Plan) में निवेश कर सकते हैं।

चाहें तो ऑटोमैटिक ट्रांसफर सेट कर दें, जिससे हर महीने एक तय तारीख को पैसा अपने आप कटकर बचत खाते में चला जाएगा।

जब पैसा आपकी आँखों के सामने नहीं होगा, तो उसे खर्च करने का मन नहीं करेगा। यह एक मनोवैज्ञानिक तरकीब है जो हमेशा काम करती है।

अचानक के खर्चों के लिए एक “Emergency Fund”

ज़िंदगी में कुछ भी हो सकता है अचानक बीमारी, कोई ज़रूरी काम, या नौकरी चली जाना।

ऐसे में EMI या रोज़ के खर्चे कैसे चलेंगे? इस तरह की मुश्किलों से निपटने के लिए, अपने 3 से 6 महीने के खर्च के बराबर एक आपातकालीन फंड (Emergency Fund) बनाएँ। इस पैसे का इस्तेमाल सिर्फ़ मुश्किल के समय में करना है।

इसे किसी ऐसे अकाउंट में रखें जहाँ से इसे आसानी से निकाला जा सके, जैसे लिक्विड फंड या एक अलग बचत खाता।

जब आपके पास यह फंड होता है, तो मन को एक शांति मिलती है और आप बाकी खर्चों में भी सोच-समझकर पैसे लगाते हैं।

यह आपकी वित्तीय सुरक्षा का एक कवच है।

EMI और ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन का हिसाब करें

नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, स्पॉटिफ़ाई, या कोई और ऐप जिसकी सदस्यता आपने ले रखी है कई बार हम उनका इस्तेमाल भी नहीं करते, फिर भी हर महीने पैसे कट जाते हैं। यह एक ऐसा खर्च है जो अक्सर हमारी नज़र में नहीं आता।

अपने Bank Statement को ध्यान से देखें और उन सभी सब्सक्रिप्शन को पहचानें जो आपके काम के नहीं हैं। जो सेवाएँ काम की नहीं हैं, उन्हें तुरंत बंद कर दें।

अगर आपके पास कई EMI चल रही हैं जैसे फ़ोन, बाइक, या फ़र्नीचर तो यह देखें कि क्या किसी छोटे लोन को जल्दी चुकाया जा सकता है।

EMI कम होने से हर महीने सैलरी में राहत मिलेगी और आपके पास खर्च करने के लिए ज़्यादा पैसे बचेंगे।

सैलरी बढ़ने पर खर्च न बढ़ाए

अक्सर ऐसा होता है कि जैसे ही सैलरी थोड़ी ज़्यादा हुई, हम खुद से कहते हैं, “अब वो नया फ़ोन तो ले ही लूं” या “अब महंगे कपड़े पहन सकते हैं।

” इसे ‘लाइफ़स्टाइल इन्फ़्लेशन’ (Lifestyle Inflation) कहते हैं, यानी आय बढ़ने के साथ-साथ खर्चों का भी बढ़ जाना।

पर ऐसा करने से आपकी बचत नहीं बढ़ती, सिर्फ खर्च बढ़ता है। जब आपकी आय बढ़े, तो यह सुनिश्चित करें कि आपकी बचत भी बढ़े।

अगर आपकी सैलरी 10% बढ़ी है, तो अपनी बचत को कम से कम 5% बढ़ाएँ। यह अनुशासन आपको लंबे समय में आर्थिक रूप से ज़्यादा मजबूत बनाएगा।

Technology से मदद लें

आजकल कई ऐसे ऐप्स हैं जो आपके खर्च और बचत को ट्रैक करते हैं।

आप इन ऐप्स में महीने का बजट सेट कर सकते हैं, जैसे खाने पर ₹5000 और ट्रैवल पर ₹3000।

अगर आप अपनी तय की गई लिमिट से ज़्यादा खर्च करेंगे, तो ऐप आपको अलर्ट देगा। इससे आप खुद-ब-खुद संभल जाएँगे।

ये ऐप्स आपके खर्चों को अलग-अलग कैटेगरी में बाँट देते हैं, जिससे आपको साफ़-साफ़ पता चलता है कि पैसा कहाँ जा रहा है।

यह एक डिजिटल डायरी की तरह है जो आपको ज़िम्मेदार बनाती है।

थोड़ा मन का भी खर्च ज़रूरी है

अगर आप सिर्फ बचत और EMI के बारे में सोचते रहेंगे, तो ज़िंदगी बोर लगने लगेगी।

हर महीने थोड़ी रकम जैसे ₹500 या ₹1000 अपने लिए रखें। इस पैसे का इस्तेमाल आप घूमने, मूवी देखने, या दोस्तों के साथ समय बिताने में कर सकते हैं।

जब यह “मन वाला खर्च” तय होता है, तो बाकी पैसों पर कंट्रोल रखना आसान हो जाता है।

यह एक तरह का इनाम है जो आपको बजट का पालन करने के लिए बढ़ावा देता है।

Conclusion

पैसा कहीं भागता नहीं, हम ही बिना सोचे-समझे उसे उड़ा देते हैं।

जैसे ही आप रोज़ के खर्च लिखना शुरू करते हैं, EMI की योजना बनाते हैं और बचत की आदत डालते हैं, तो आपको लगेगा कि सैलरी अब पहले जैसी जल्दी खत्म नहीं होती।

थोड़ी सी समझदारी, थोड़ी सी प्लानिंग, और थोड़ा सा धैर्य यही वे तीन चीज़ें हैं जो आपको चाहिए।

अपने पैसों को नियंत्रित करना सीखें, क्योंकि जब आप अपने पैसों को नियंत्रित करते हैं, तो आप अपनी ज़िंदगी को भी नियंत्रित करते हैं।

यह आदत आपको न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगी, बल्कि एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित भविष्य भी देगी।

I am Jeeshan, writer of this blog. I have 8+ year of experience in banking sector. I have started this blog to share the valuable topic peoples always asking for it.

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